राजस्थान दिवस: जोधपुर नरेश को मारने पर उतारू हो गए सरदार पटेल, पढ़ें- इतिहास के झरोखे से मरुधरा से जुड़े कुछ रोचक किस्से 

Samachar Jagat | Thursday, 30 Mar 2017 01:47:52 PM
rajasthan day special story

नरेंद्र बंसी भारद्वाज

राजस्थान दिवस के उपलक्ष्य में हम आपको आज राजस्थान का निर्माण कैसे हुआ, इसके निर्माण के दौरान घटित रोचक घटनाओं के बारे में बताने जा रहे है तो आइए जानते है राजस्थान के एकीकरण के बारे में

1805 ई. में विलियम फ्रेंकलिन ने अपने ग्रंथ मिल्ट्री मेमायर्स ऑफ मिस्टर जार्ज थॉमस में इस बात का जिक्र किया था कि जॉर्ज थामस ही सम्भवत प्रथम व्यक्ति था जिसने इस भू-भाग के लिए राजपुताना शब्द का प्रयोग किया। जबकि राजस्थान के लिए सर्वप्रथम रायथान और राजस्थान शब्द का प्रयोग 1829 ई. में कर्नल जेम्स टॉड के द्वारा अपने ग्रंथ द एनाल्स एण्ड एन्टीक्वीटीज ऑफ राजस्थान में किया गया था। 

आज़ादी से पहले राजस्थान को राजपुताना के नाम से जाना जाता था। एकीकरण से पूर्व राजस्थान में उन्नीस रियासते और तीन ठिकाने थे। इन रियासतों का एकीकरण सात चरणों में पूरा हुआ था। और इसमें करीब 8 साल 7 महीनें 14 दिन का समय लगा था।  

30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर वृहत्तर राजस्थान संघ बना।  वृहत्तर राजस्थान संघ के निर्माण के बाद ही राजस्थान का यह खाका अस्तित्व में आया था। यही वजह है कि 30 मार्च को राजस्थान दिवस मनाया जाता है। 

जून विभाजन योजना के तहत भारत और पाकिस्तान को अंग्रेजी शासन से आजादी मिली थी। जिसके अनुसार मुस्लिम बाहुल्य इलाके पाकिस्तान और हिन्दू बाहुल्य इलाके हिंदुस्तान बताये गए। जबकि तत्कालीन समय में मौजूद देश में कुल 562 रियासतों के लिए यह छूट दी गई की वह पाकिस्तान या हिंदुस्तान में अपनी मर्जी से शामिल हो सकती है या फिर जिन रियासतो की जनसंख्या 10 लाख व वार्षिक आय एक करोड़ रूपए हो वह रियासत स्वतंत्र भी रह सकती है। 

योजना की शर्तें को पूरा करने वाली राजस्थान में चार रियासतें थी। जिनका नाम क्रमश बीकानेर, जोधपुर, जयपुर, उदयपुर था। 

अलवर, भरतपुर, धौलपुर, डूंगरपुर, टोंक और जोधपुर रियासतें राजस्थान में नही मिलना चाहती थी। 

टोंक व जोधपुर रियासतें एकीकरण के समय पाकिस्तान में मिलना चाहती थी। 

अलवर, भरतपुर व धौलपुर रियासतें एकीकरण के समय भाषायी समानता के आधार पर उत्तरप्रदेश में मिलना चाहती थी।

आपको बताते चलें कि अलवर रियासत का सम्बंध राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या से जुड़ा था। महात्मा गांधी की हत्या के संदेह में अलवर के शासक तेजसिंह व दीवान एम.बी. खरे को दिल्ली में नजर बंद करके रखा गया था। इसी के चलते उस दौर में अलवर रियासत ने भारत का प्रथम स्वतंत्रता दिवस भी नहीं मनाया।

बांसवाड़ा के शासक चन्द्रवीर सिंह ने एकीकरण विलय पत्र पर हस्ताक्षर करते समय कहा था कि मैं अपने डेथ वारन्ट पर हस्ताक्षर कर रहा हूं। 

राजस्थान के इस क्षेत्र के लिए अलग से थी एक विधानसभा 
राजस्थान में उन्नीस रियासतें और तीन ठिकानों के अलावा एक ब्रिटीश कमिशनरी क्षेत्र भी हुआ करता था। जिसे अजमेर-मेरवाड़ा के नाम से जाना जाता था। अजमेर-मेरवाड़ा ब्रिटिश कमिशनरी क्षेत्र की बाकयदा अलग से एक विधानसभा भी थी। जिसे 'धारा सभा' के नाम से जाना जाता था। धारा सभा में 30 विधायक चुनकर आते थे। आजादी के बाद अजमेर-मेरवाड़ा को बी श्रेणी के राज्य में रखा गया। अजमेर-मेरवाड़ा के प्रथम व एकमात्र मुख्यमंत्री हरिभाऊ उपाध्याय थे।

जब सरदार पटेल ने तान दी जोधपुर नरेश पर पिस्टल
यह घटना 1949 की है जब जयपुर, जोधपुर को छोड़कर बाकी रियासतें राजस्थान में या तो शामिल हो चुकी थी या शामिल होने पर सहमति दे चुकी थी। जबकि बीकानेर और जैसलमेर रियासतें जोधपुर नरेश की हां पर टिकी हुई थी। उधर जोधपुर नरेश महाराजा हनुवंत सिंह उस वक़्त जिन्ना के संपर्क में थे। 

जिन्ना ने हनुवंत सिंह को पाकिस्तान में शामिल होने पर पंजाब-मारवाड़ सूबे का प्रमुख बनाने का प्रलोभन दिया। तत्कालीन समय में जोधपुर से थार के रास्ते लाहौर तक एक रेल लाइन हुआ करती थी, जिस से सिंध और राजस्थान की रियासतों के बीच प्रमुख व्यापार हुआ करता था। जिन्ना ने आजीवन उस रेल लाइन पर जोधपुर के कब्ज़े का प्रलोभन भी दिया। जिसके चलते हनुवंत सिंह ने पाकिस्तान में शामिल होने की हाँ कर दी थी। 

सरदार पटेल तब जूनागढ़ (तत्कालीन बम्बई और वर्तमान में गुजरात) के मुस्लिम राजा को समझा रहे थे। जैसे ही उनके पास यह सुचना पहुंची तो सरदार पटेल तत्काल हेलिकॉप्टर से जोधपुर के लिए रवाना हो गए। लेकिन रास्ते में सिरोही-आबू के पास उनका हेलिकॉप्टर खराब हो गया। जिसके बाद एक रात तक स्थानीय साधनों से सफर करते हुए वे तत्काल जोधपुर पहुंचे।  

हनुवंत सिंह सरदार पटेल को उम्मेद भवन में देख भौंचक्का रह गए। जब बात टेबल तक पहुंची तो हनुवंत सिंह ने सरदार पटेल को धमकाने के उद्देश्य से मेज पर ब्रिटिश पिस्टल रख दी। सरदार पटेल ने जोधपुर नरेश को मुस्लिम राष्ट्र में शामिल होने पर आगे चलकर होने वाली सारी परेशानियों के बारे में बताया, पर हनुवंत सिंह नहीं माने और उलटे सरदार पर राठौड़ों को डराने का आरोप लगाकर आसपास बैठे सामंतों को उकसाने लगे। 

इस माहौल में स्थिति ऐसी आ गयी कि सरदार पटेल ने यह पिस्टल उठा ली और हनुवंत सिंह की तरफ तानकर कहा कि राजस्थान में विलय पर हस्ताक्षर कीजिए नहीं तो आज हम दो सरदारों में से एक सरदार नहीं बचेगा। सरदार पटेल के हाथों में पिस्तौल देख उनके सचिव मेनन सहित सभा में उपस्थित सभी सामंत डर गए। अंततः अपनी हनुवंत सिंह को विलय पत्र पर हस्ताक्षर करने पड़े और इस प्रकार जोधपुर सहित बीकानेर और जैसलमेर भी राजस्थान में शामिल हो गए। 

यही वजह रही कि सरदार पटेल ने वृहद राजस्थान के प्रथम महाराज प्रमुख हनुवंत सिंह को ना बनाकर उदयपुर के महाराणा भूपालसिंह को बनाया।

 



 

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