महाराणा प्रताप ने जीता था हल्दी घाटी का युद्ध, अकबर ने नहीं!

Samachar Jagat | Monday, 06 Mar 2017 09:46:34 AM
Maharana Pratap won battle of Haldighati, not Akbar

ये बात तो सब लोग जानते हैं कि राजस्थान के मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित हल्दी घाटी का युद्ध अकबर ने जीता था। इसी को ध्यान में रखते हुए अब राजस्थान सरकार इस इतिहास को बदलने जा रही है और इसकी पूरी तैयारी भी कर ली है। खबरों के अनुसार, राजस्थान में विश्वविद्यालय के स्तर पर पढ़ाई जाने वाली इतिहास की किताबों में बदलाव किया जा सकता है। अब आने वाले समय में स्टूडेंट को पढ़ाया जाएगा कि हल्दी घाटी की लड़ाई में महाराणा प्रताप ने मानसिंह के नेतृत्व में लड़ाई कर रही अकबर की सेना को हराया था।

बीते महीने राज्य सरकार के उच्च शिक्षा मंत्री ने यूनिवर्सिटी की बैठक में इसके लिए पक्ष लिया था। यूनिर्सिटी की सिंडीकेट और भाजपा विधायक मोहन लाल गुप्ता ने राजस्थान विश्वविद्यालय के इतिहास के पाठ्यक्रम में चेंज करने का प्रस्ताव दिया था, इसमें यह कहा गया था कि 1576 ईस्वी में हुए हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप ने जीते थे।

अब आप को पता दें ये मुद्दा इतिहासकार डॉ. चंद्रशेखर शर्मा द्वारा लिखित किताब 'राष्ट्र रतन महाराणा प्रताप' के शोध के आधार पर उठाया गया है। यह किताब 2007 में प्रकाशित हुई थी। इस किताब को दिल्ली के प्रकाशक आर्यवर्त संस्कृति संस्थान ने प्रकाशित किया था। इतिहासकार शर्मा ने अपने शोध और सबूतों के आधार पर महाराणा प्रताप को विजेता बताया है।

आपको बता दें कि इस किताब को स्नातक की पढ़ाई कर रहे छात्रों की रेफरेंस बुक में शामिल कर दिया गया था, अब अधिकारिक रूप से इसे छात्रों के पाठ्यक्रम में शामिल करने या नहीं करने का फैसला किया जाएगा।

राष्ट्र रतन महाराणा प्रताप के लेखक डॉ. शर्मा उदयपुर के सरकारी कॉलेज 'मीरा कन्या महाविद्यालय' के छात्रों को पढ़ाते हैं। उन्होंने शहर के जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यपीठ विश्वविद्यालय से अपनी पीएचडी के लिए इस किताब पर काम किया है।

उन्होंने बताया कि जितना काम उन्होंने अपनी पीएचडी के दौरान इस युद्ध के बारे में जो भी तथ्य जुटाए हैं, वो सब इस किताब में लिखे हैं।

डॉ. चंद्रशेखर शर्मा इन कारणों से महाराणा प्रताप को विजयी मानते हैं :-

उद्देश पूर्ण करना

उद्देश्य के आधार पर शर्मा ने कहा कि महाराणा प्रताप का उद्देश अपनी मातृभूमी की रक्षा करना था और उसी के आधार पर प्रताप ने अकबर को हराया था। उन्होंने यह भी कहा कि यदि अकबर को युद्ध में विजय प्राप्त होती तो वो गिफ्तार कर के मौत की दी होती और राणा के राज्य पर भी कब्जा कर लिया होता।

उन्होंने यह सबूत भी दिया कि युद्ध के बाद अकबर सेनापति मान सिंह और आसिफ खां से नाराज होकर उन्हें छ: माह के के लिए दरवार में नहीं आने की सजा दी था। उन्होंने आगे कहा कि यदि मुगल विजय प्राप्त करती तो अकबर युद्ध में प्रताप को हराने वाले को पुरस्कृत करते ना कि दंडित करते। इससे साफ होता है कि महाराणा प्रताप  ने युद्ध में विजय प्राप्त की था।

हल्दी घाटी के नजदीक जमीनों को पट्टे जारी करना

डॉ. शर्मा ने अपने शोध के अनुसार महाराणा प्रताप की जीत को दर्शाने वाले ताम्र पत्र जनार्दन नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में जमा कराए हैं।
उन्होंने कहा कि युद्ध के बाद एक साल कर प्रताप ने हल्दी घाटी के नजदीकी गांवों की जमीनों के पट्टे जारी किए थे। इन पर एकलिंगनाथ के दीवान प्रताप के हस्ताक्षर है। और उस समय जमीनों के पट्टे जारी करने का अधिकार केवल राजा के पास ही होता था, यदि प्रताप को जीत नहीं मिलती तो उन ताम्र पत्र पर उनके हस्ताक्षर नहीं करते।

उन्होंने इन ताम्र पत्रों को तत्कालीन महान राजपूूत परिवारों और गांवों के किसानों से एकत्र कर अपनी किताब में भी प्रकाशित किया है। साथ ही उन्होंने यह भी निष्कर्ष निकाला कि यूद्ध के बाद प्रताप प्रशासनिक व्यवस्था में को बदलाव नहीं किया गया था। भीलवाड़ा मैदानी क्षेत्रों के साथ-साथ मेवाड़ के पहाड़ी क्षेत्रों पर प्रताप के प्रभावी नियंत्रण के निशान आज भी उपलब्ध है।
महाराणा प्रताप ने 11834 में जिस जमीन पर अपने घोड़े 'चेतक' की समाधी का नविनीकरण किया था, वो जमीन 1576 में लड़े गए हल्दी घाटी के युद्ध के बाद समाधी के लिए आवंटित की गई थी। इससे स्पष्ट हो जाता है कि हल्दी घाटी के युद्ध के बाद भी मेवाड़ और उसके आप-पास के क्षेत्रों पर प्रताप की ही नियंत्रण था।

प्रताप ने लड़ा था गुरिल्ला युद्ध
महाराणा प्रताप ने गुरिल्ला युक्ति के युद्ध लड़ा था जिससे मुगल सेना उनके सामने घुटने टेकने को मजबूर हो गई थी। उन्होंने बताया कि एक समय पूरे राजस्थान पर अकबर का ही आधिपत्य था, लेकिन प्रताप ने मेवाड़ को बचाने हेतु अकबर से 12 वर्षों तक युद्ध लड़ा था। अकबर ने उनको हराने के लिए हर तरीका इस्तेमाल किया लेकिन कामयाबी नहीं मिली।
शर्मा ने कहा कि लोगों का मानना है कि युद्ध केवल 4 घंटे ही चला, लेकिन यह सत्य नहीं है, अपितु यह लड़ाई सुर्योदय से सुर्यास्त तक चली थी। इसका तो पुरातात्विक सबूत के अलावा भारतीय और फारसी मूल के साहित्यिक कृतियों में हवाला दिया गया है।

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पहला युद्ध महाराणा प्रताप और मुगलों के बीच हल्दी घाटी में शुरू हुआ था, जहां पर मुगल सेना भागने पर मजबूर हो गई थी। जबकि दूसरा युद्ध हल्दी घाटी से 7 किमी दूर 'राकतलाई' लड़ा गया था।


राजस्थानी लोककथाओं से गौरवान्वित और मोहित
डॉ. शर्मा कहते हैं कि वो अपने आप को एक गौरवनवित राजस्थानी मानते हैं और महाराणा प्रताप के साहस और गौरव का गुणगान करने वाली लोककथाओं को बहुत पसदं करते हैं।
उन्होंन बताय कि वे वहां के लोग स्थानिय लोग हमेशा से ही मानते आए है कि महाराणा प्रताप ने अकबर को हराया था, और उनको इससे कोई मतबल नहीं की इतिहास मेें क्या लिखा गया है। उनकी नजर में तो प्रताप हमेशा से ही हीरो हैं।

कहा जाता है कि ऐतिहासिक युद्ध में अकबर केवल प्रताप के बेशकीमती हाथी 'रामप्रसाद' पर ही अपना अधिकार कर पाया था। उस समय अकबर की सेना उस हाथी को लेकर गांव-गांव में जाकर प्रताप को हराने का ढिंढोरा पीट रही थी, लेकिन किसी ने भी उनकी बात पर यकीन नही किया। इन लोककथाओं के आधार पर लोग अकबर का मजाक बनाते हैं कि उन्होंने झूठी विजय गाथा बनाई है।
उन्होंने कहा कि वो किसी भी तरह की विचार धारा को आगे बढ़ाने की कोशिक नहीं करे रहे हैं। मैंने किसी भी परिकल्पना को आधार बनाए बगैर शोध किया है, और उनकी खोज में ताम्र पत्रों का बड़ा योगदान है।

बदल पाएंगे इतिहास!
इस पर डॉ. शर्मा ने कहा कि विधयक गुप्ता कहने पर राजस्थान विश्वविद्यालय के अधिकारियों से संपर्क नहीं किया है, अपितु हरियाणा के शिक्षा मंत्रालय के उच्च अधिकारियों से बात की है।
उन्होंने बताया कि 20008 में भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत ने महाराणा प्रताप के शोध के बारे में बातचीक रे लिए दिल्ली आने का आमंत्रण दिया था।

उनका मानना है कि किताबों में संशोधन के लिए ताजा शोध कार्यों को समायोजित करना होगा।
इतिहास में बदलाव की बात पर वो बताते हैं कि यह एक राजनीतिक मुद्दा है और मैं इसके लिए कभी चिंतित नहीं हुआ।
उन्होंने आगे बताया कहा कि यदि आवश्यक हुआ तो युद्ध परिणमों को लेकर वो किसी भी विद्वान के साथ बहस के लिए तैयार है, और उसमें जीत उनकी ही होगी यह उनको पूरा विश्वास है।



 
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