नरेन्द्र बंसी भारद्वाज:
देश और पूरी दुनिया को राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र ने कई नामी उद्योगपति दिये है। इन्हीं उद्योपति घरानों में से बिरला घराना आज देश के अग्रणी उद्योपतियों में शामिल है। आपने देश के कई हिस्सो में बिरला मंदिर देखे होंगे जो कि बिरला के नाम से जाने जाते है। लेकिन क्या आप बिरला मंदिर और बिरला से इस इतिहास को जानते है कि बिरला ने देश में यह मंदिर क्यों बनवाये। अगर नहीं तो आइये जानते है इससे जुडी रोचक कहानी....
उद्योगपति बिरला और बिरला मंदिर का एक रोचक इतिहास है और इसी के चलते आज तक बिरला घराना देश में बिरला मंदिरो को निर्माण करता रहता है। भगवान लक्ष्मी नारायण को समर्पित यह मंदिर देश के हर एक कोने में स्थित है। जो की अपनी एक अलग और अनूठी स्थापत्य के लिए विश्व विख्यात है। यह मंदिर बिरला ट्रस्ट द्वारा बनवाये जाते है। यह मंदिर सफेद संगमरमर की शानदार और भव्य इमारते होती है। इन सभी मंदिरो में साल के बारह महीने, तीन सौ पेंसठ दिन, चौबीस घंटे, दिन रात काम चलता रहता है।
इन मंदिरो में हमेशा चलते रहने वाले काम के पीछे एक पुराना इतिहास और बड़ी कहानी है। यह कहानी है बिरला मंदिरो के निर्माण और बिरला के देश के बड़े उद्योगपतियों में शुमार होने की। यह कहानी है शेखावाटी के परमहंस के नाम से विख्यात गणेशनारायणजी और बिरला घराने के जुगलकिशोर बिड़ला की। बिरला घराने के पुरोधा घनश्याम दास बिरला के घर जुगलकिशोर बिड़ला का जन्म झुंझुनू जिले के बुगाला ग्राम में सम्वत 1903 में पौष बदी एकम को गुरुवार के दिन हुआ था। इनका जन्म खंडेलवाल ब्राह्मण घनश्यामदास के घर हुआ था।
संवत 1917 में मात्र चौदह वर्ष की उम्र में नवलगढ़ के चतुर्भुज की लडक़ी यशोदा के साथ इनका विवाह सम्पन्न हुआ। संवत 1947 में ये चिड़ावा नगरी आये। चिड़ावा आगमन के बाद इनका संपर्क गणेशनारायण जी से हुआ। जो की इस क्षेत्र के एक बड़े अघोरी थे। लोग इन्हे पागल बाबा के नाम से भी जानते है। इनके लिए कहा जाता था की इनके मुख से निकली वाणी कभी असत्य नहीं होती थी।
पिलानी निवासी सेठ जुगलकिशोर बिड़ला से परमहंस का विशेष स्नेह था तथा इनके आशीर्वाद से ही बिड़ला परिवार उद्योग, व्यापार के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित कर सका। एक बार बाबा ने कहा कि जुगलकिशोर जा, कमाने निकल जा, आज तेरा शुभ दिन है। बाबा की आज्ञा मानकर सेठ कलकत्ता की ओर चल दिये। रास्ते में उसे दाहिनी तरफ फन उठाये काला सांप मिला जो शुभ शकुन था मगर सेठ उसे अपशकुन मानकर वापिस लौट आये और बाबा को पूरी घटना बतायी। बाबा बोले जुगलकिशोर तुम से भारी गलती हो गई। अगर तू चला जाता तो चक्रवर्ती सम्राट बनता। जा अब भी तू यशस्वी बनेगा।
अपनी करनी बरनी बन्द मत होने देना इसे सदैव चालू रखना और इसके बाद बिरला घराने ने अपनी करनी बरनी कभी भी बन्द नही की। बाबा के आशीर्वाद के अनुसार करनी का मतलब अपना व्यवसाय और बरनी का अर्थ दान और पुण्य से है। इसी के चलते बिरला ट्रस्ट पूरे देश में बिरला मंदिर का निर्माण करवा रहा है। जहाँ इन सभी मंदिरो में साल के बारह महीने, तीन सौ पेंसठ दिन, चौबीस घंटे, दिन रात काम चलता रहता है।