जयपुर। फिल्मी कहानीकार एवं गीतकार जावेद अख्तर ने कहा कि वर्तमान दौर में भी देश की संस्कृति एवं परम्पराओं के अनुरूप बनी फिल्में देखने को मिलती है और इसके विपरीत फिल्में बनाने वाले दर्शको से मार खा कर इस क्षेत्र से बाहर हो रहे है।
जयपुर में चल रहे साहित्यकार सम्मेलन में आज ऑफटर दी अंग्री मैन, दी ट्राडिशेनल वुमन विषय पर हिस्सा लेते हुए अख्तर ने कहा कि फिल्मी जगत में फिल्म बनाने के अगल अलग दौर चले। वर्तमान में जमींनदार एवं ठाकुरों पर आधारित फिल्मों दौर समाप्त हो चुका है।
उन्होंने कहा कि इसके बाद यंग मैन अंग्री स्टार का दौर चला और बाद में बड़े कारखाना मालिक एवं व्यवसायी को खलनायक के रूप में दिखाया जाने लगा।
उन्होंने कहा कि इसके बाद फिल्म अभिनेता एवं अभिनेत्री के इर्द गिर्द फिल्में बनने लगी लेकिन 70 के दशक के बाद स्टार को ही महान एवं शक्तिशाली बताते हुए फिल्मों का निर्माण हुआ और हीरो को ही दादा के रूप में दिखाया जाने लगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान में पति रात में शराब पीकर एवं मुजरा देखकर घर आने पर सो जाए तो पत्नी (अभिनेत्री) उसके जूते उतारे ऐसा नहीं हो सकता है।
उन्होंने कहा कि आज बनने वाली फिल्में समाज की जरूरतों को ध्यान में रखने की बजाए हॉल में फिल्म देखने वालों को तव्वजों दी जाती है। ऐसी फिल्मों का मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना है। उन्होंने कहा कि वर्तमान में भी कई अच्छी फिल्में बनी है जिसे देखने को दर्शक ललायित रहते है।
उन्होंने कहा कि पुराने दौर में गाने भी सकारात्मक सोच के साथ लिखे एवं गाए जाते थे जो वास्तविक थीम पर होते थे लेकिन अब गानों को सुनने से ही पता चल जाता है कि गाना कैसा है। उन्होंने कहा कि अब हीरो एवं हीरोइन में एक को प्रमुखता देते हुए भी फिल्में बनी है।
उन्होंने आइटम सांग्स को लेकर कहा कि ये मदारी का बंदर हैं। साथ ही अपनी नई कविता 'नया हुक्मनामा' की पंक्तियां भी सुनाईं।
अख्तर ने एक सवाल के जबाब में कहा कि देश में अमीर-गरीब के बीच बढती खाई ने अपराधों को बढावा दिया है और इस तरफ ध्यान देने की जरूरत हैं।