आजादी के बाद भी बिजली-पानी को मोहताज गांव 'राजघाट', MBBS स्टूडेंट के कैंपेन से जागी सरकार

Samachar Jagat | Saturday, 08 Apr 2017 12:39:49 PM
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विक्रम सोलंकी
जयपुर। मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया। मजरूह सुलतानपुरी का लिखा यह शेर एसएमएस के एमबीबीएस छात्र अश्वनी पाराशर पर बिलकुल सटीक बैठता है। अश्वनी ने धौलपुर से करीब 5 किलोमीटर दूर राजघाट गांव की मूलभूत सुविधाओं के लिए एक 'सेव राजघाट' कैंपेन शुरू किया हैं जो इन दिनों सरकार में भी चर्चा का विषय बना हुआ है।

कहने को तो हमें आजादी मिल गई हैं लेकिन धौलपुर के राजघाट गांव में न तो बिजली हैं और न ही पानी। गांव के लोग आज भी ऊबड-खाबड़ कच्ची सड़कों पर ही पैदल आते-जाते हैं। अश्वनी ने अपने साथियों के साथ मिलकर गांव की दुर्दशा को सुधारने की ठानी और प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री, सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों तक को पत्र लिख डाले, लेकिन किसी ने सुध नहीं ली।

अश्वनी बताते हैं कि जब इस गांव की दूर्दशा के बारे में सुना तो मैं खुद अचरज में पड़ गया था। कहने को तो प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, राजीव गांधी विद्युतीकरण योजना भी गांवों के लिए है, लेकिन नगरपरिषद क्षेत्र में होने के बावजूद न तो राजघाटवासियों को न तो कोई स्थानीय योजना मिल पा रही है और ना ही केंद्र की ओर से। 

लेकिन अश्वनी ने कुछ अलग हटकर करने की ठानी और गांव की बहाली के लिए प्रयास शुरू किए। आज अश्वनी के साथ उसके कई साथी कैंपेन से जुड चुके हैं। अश्वनी के कारण ही अब गांव में कलेक्टर से लेकर कई प्रशासनिक अधिकारी सर्वे करने के लिए पहुंच चुके हैं। धोलपुर में इन दिनों उप-चुनाव का जोर चल रहा है, ऐसे में राजस्थान के चोटी के नेता वहां डेरा डाले हुए हैं। 

20 साल में गांव में हुई सिर्फ दो शादियां
अश्वनी बताते हैं बिजली व पानी न होने के कारण गांव के ऐसे हालात हो चुके हैं कि 20 साल में गांव में सिर्फ दो शादियां ही हुई हैं। 1996 में गांव के 35 साल के कन्हैया की शादी हुई थी उसके बाद 2011 में वासुदव पुत्र चौखाइयां की हुई। ऐसा नहीं है कि गांव में शादी के लायक लड़के व लड़कियां नहीं है, लेकिन कोई भी गांव की लड़की न तो लेना चाहता हैं और न ही देना चाहता है। यही वजह है कि गांव में सैकड़ों लड़के व लड़किया कुंवारे ही घूम रहे हैं। 

यह जानकर भी अचरज होगा कि गांव में एक सरकारी स्कूल तो है, लेकिन कोई भी 5वीं से आगे पढ़ नहीं पाया। गांव के लोगों को पानी भरने के लिए चंबल नदीं पर ही आश्रित होना पड़ता है। गांव की महिलाएं चंबल नदी से तैरती लाशों के बीच में से पीने के लिए पानी भरकर लाती हैं। 

एक भी घर में नहीं टीवी, फ्रिज...महज दो लोगों के पास है मोबाइल
देश को आजादी मिले 70 बरस हो चुके हैं, सरकारें एक-एक गांव तक सुविधाएं पहुंचाने के दावे करती आई हैं। लेकिन किसी सरकारी नुमाइंदे से ये पूछा जाए कि धौलपुर का यह राजघाट गांव आज भी बिजली व पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से कैसे अछूता रह गया, तो किसी के पास कोई जवाब नहीं। 

हैरानी की बात तो यह है कि गांव में लोगों के लिए टीवी व फ्रिज और मशीनी जगत किसी सपने के समान है। गांव में एक-दो ग्रामीणों के पास मोबाइल तो हैं, लेकिन मोबाइल को चार्ज करने के लिए उन्हें बड़ी बैटरी का उपयोग करना पड़ता है। भीषण गर्मी में जहां लोग सुकून के लिए घरों में बैठते हैं, यहां के लोग घरों से निकल कर पेडों की छांव में बैठते हैं। मकान कच्चे होने के कारण घर के अंदर गर्मी की ज्यादा तपन होती है। 

2016 में मनाई सार्थक दीवाली
गांव के इन हालातों को जानने के बाद अश्वनी वहां के लोगों के लिए प्रयास शुरू किए। अश्वीन ने पहली बार 2016 में अपने दोस्तों के साथ मिलकर गांव में पहुंच कर लोगों के साथ दीवाली मनाई। हालांकि परिवार से दूर होने का गम तो था, लेकिन अश्वनी ने उन पलों को बयां करते हुए बताया कि लोगों के चेहरे पर ऐसी खुशी थी मानों हकीकत में दीवाली पर कोई चिराग जला हो। 

बच्चों ने उनको बताया कि वह पहली बार दीवाली मना रहे हैं। इसके बाद उन्होंने गांव में लोगों के लिए मेडिकल कैंप लगवाए और कपड़े, मिठाईयां भी पहुंचाई। इस अभियान में उनके साथ प्रहलाद, लोकेंद्र, सौरभ, दिलीप, प्रभुदयाल, भीकम, हरीओम, अजीत, समर सिह, विकास, सचिन, प्रणव, चौबेसिह सहित कई युवा जुड गए है। 

सोर्स:http://www.rajasthankhabre.com

 



 

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