अमृतसर। पंजाब कांग्रेस विधायक दल के नेता चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा कि 1985 को हुए पंजाब समझौते के तहत सतलुज यमुना लिंक नहर का निर्माण पूरा करना अकाली दल की वचनबद्धता थी। जवानी संभाल यात्रा के आखिरी दिन अमृतसर पहुंचने पर चन्नी ने कहा कि बादल को यह जरूर बताना चाहिए कि क्यों उनके मुख्यमंत्री रहते जमीन अधिग्रहण करने हेतु 20 फरवरी, 1978 को दो अधिसूचना नं. 113/5/एस.वाई.एल और 121/5/एस.वाई.एल जारी की गई थीं।
इसके अलावा, गंभीर आवश्यकता के आधार पर भूमि अधिग्रहण कानून की धारा 17 को धारा 5 (ए) से जोड़ा गया था। उन्होने कहा कि राज्य के लोग जानना चाहते हैं कि ऐसी क्या जल्दी थी।
बादल को उनके पारिवारिक मित्र एवं तत्कालीन हरियाणा के मुख्यमंत्री चौधरी देवी लाल द्वारा विधानसभा में दिए बयान के बारे में भी बताना चाहिए कि वह आपके साथ एस.वाई.एल नहर के लिए नींव पत्थर रखने को रजामंद थे। यह पूरा मामला ऑन रिकॉर्ड है, जिससे बादल पैर नहीं पीछे खींच सकते। उन्होंने बादल को याद दिलाया कि पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंटस एक्ट, 2004 से धारा 5 हटाना उनकी पार्टी के मैनिफैस्टो का हिस्सा था, लेकिन उन्होंने एक बार फिर से उक्त मुद्दे पर लोगों को बेवकूफ बनाया।
जिन्होंने रिकॉर्ड के आधार पर कहा कि पंजाब पुनर्गठन एक्ट 1966 के तहत किए गए बंटवारे के खिलाफ 1976 में सुप्रीम कोर्ट में जाने वाला पंजाब पहला राज्य नहीं था, बल्कि हरियाणा एवं पंजाब ने सिर्फ अपील का पालन किया था।
चन्नी ने कहा कि अकाली दल पहले 1967 में सत्ता में आया था और बादल ने स्वयं 27 मार्च, 1970 को बतौर मुख्यमंत्री पहली बार शपथ ली और 14 जून, 1971 तक राज्य पर शासन किया। क्या उनकी पार्टी या बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने उस वक्त पंजाब पुनर्गठन एक्ट, 1966 की धारा 78-80 के खिलाफ केन्द्र के पास रोष जताया था, जिसके तहत तत्कालीन प्रधानमंत्री ने 1976 में पंजाब व हरियाणा के बीच पानी के बंटवारे का ऐलान किया था।
चन्नी ने कहा कि वह बादल को 1955 में नदियों के पानी के विवाद की शुरूआत से सारा रिकॉर्ड पेश करने की चुनौती देते हैं। उन्होने कहा कि आज कांग्रेस विधायक दल ने पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंटस एक्ट, 2004 की प्रेजीडेंशियल रेफरेंस के संबंध में उच्चतम न्यायालय के फैसले पर 16 नवंबर को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी से मिलने का संकल्प लिया है।
एक अन्य संकल्प के जरिए कांग्रेस पार्टी ने तुरंत बादल सरकार को बर्खास्त किए जाने की मांग की है, जो उच्चतम न्यायालय में पंजाब के हितों को बचाने में पूरी तरह से विफल साबित हुई है। कांग्रेस ने वर्तमान शासन में निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव होने को लेकर भी आशंका जाहिर की है।