इंडस्ट्री के रोल को और मजबूत करेगा दिल्ली यूनिवर्सिटी में होने वाला रिसर्च। इसीलिए रिसर्च को बढ़ावा देने के लिए नई ड्राफ्ट पालिसी पर ध्यान दिया जा रहा है। वैसे तो हर साल दिल्ली यूनिवर्सिटी 400 डॉक्टेरेट देती है, मगर इस बार आंकड़ा 600 है। जिसकी वजह से विद्यालय को बाहर से 300 करोड़ मिलते है। किसी भी यूनिवर्सिटी के रेपुटेशन और रैंकिंग के पीछे सही रिसर्च का बहुत बड़ा हाथ होता है।
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यूनिवर्सिटी-इंडस्ट्री सेल ऐसी कोशिश में है कि इंडस्ट्री के साथ सहयोग बढ़ाया जाए। यह अकैडमिक्स और इंडस्ट्री को साथ लाने में सहयोग करेगा। इस सहयोग और लिंकेज से एक डाटाबेस के निर्माण की भी उम्मीद बंधी है।
यूनिवर्सिटी की एग्जीक्यूटिव काउंसिल मेंबर आभा देव हबीब ऐसे किसी गठजोड़ से आगाह करती हैं. वह कहती हैं कि यदि इस गठजोड़ के मार्फत लैब में काम करना और किसी चिप को बनाना है तो ठीक है। मगर इंडस्ट्री के किसी दिशा विशेष में रिसर्च और परिणाम को प्रभावित भी करना चाहेगा।
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साल भर के भीतर दिल्ली विश्वविद्यालय कुल 400 डॉक्टरेट देती है. इस वर्ष यह आकड़ा 600 है. इसकी वजह से विश्वविद्यालय को बाहर से 300 करोड़ रुपये मिलते हैं. यूनिवर्सिटी की ओवरऑल रैंकिंग और रेपुटेशन के पीछे रिसर्च एक बड़ी वजह होती है। यहां के दस्तावेज यूनिवर्सिटी स्तर पर ग्रांट की संख्या बढ़ाने, नए संस्थान और थीमों को राष्ट्रीय और सामाजिक जरूरतों के हिसाब से तैयार किए जाते है।
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