सरकार द्वारा काले धन पर रोक करने को लेकर नोटबंदी का सीधा असर शिक्षण संस्थानों पर भी पड़ा है। क्योंकि अब वे छह कर भी उम्मीदवारों से अतिरिक्त शुल्क नही ले पाएंगे। हमारे एजुकेशन सिस्टम में कैपिटेशन फीस (अतिरिक्त शुल्क) नर्सरी दाखिले और प्रोफेशनल उच्च शिक्षा में अधिक प्रचलित है।
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शिक्षण संस्थानों के लोगो का कहना है-
केरल में प्रोफेशनल कॉलेज की श्रृंखला चलाने वाले राजु डेविस पेरेपादन कहते हैं कि नोटबंदी का सीधा असर इस सेक्टर पर पड़ेगा. वे कहते हैं कि अलग-अलग कोर्स और स्पेशलाइजेशन के हिसाब से सीटें 2 लाख से 2 करोड़ तक बेची जाती रही हैं।
वे आगे कहते हैं कि MBBS की एक सीट 40 लाख से 60 लाख तक बिकती है और MD (मास्टर्स ऑफ मेडिसिन) की एक सीट 2 करोड़ तक बिकती रही है। ठीक उसी तरह इंजीनियरिंग की सीटों का रेट 2 लाख से 10 लाख तक के बीच रहा है।
नर्स सहित कुल 107 पदों के लिए वेकैंसी
हालांकि, उनके अनुसार एजुकेशन सेक्टर में कार्यरत ऐसे कई लोग हैं जो इसे कुछ समय का असर मानते हैं। और इन तौर-तरीकों में विश्वास रखने वाले लोग कोई और रास्ता तलाश लेंगे। हो सकता है कि अतिरिक्त शुल्क अब सोने में अदा की जाए। इसके अलावा देश से बाहर जाने वाले छात्रों की संख्या में भी कमी आएगी। नाम न छापने की शर्त पर दिल्ली में सलाहकार का काम करने वाले एक शख्स ने कहा कि सरकार के इस कदम से सामान्य आय वर्ग के परिवार के बजाय मोटी कमाई वाले लोग परेशान है।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़े को मानें तो साल 2015-16 में शिक्षा से जुड़ा खर्च 1.98 बिलियन डॉलर था। देश से लगभग 2,50,000 स्टूडेंट्स एक समय में बाहर पढ़ने गए हैं। नई दिल्ली में स्थित कई दूतावास भी सरकार के इस कदम पर बराबर नजरें टिकाए हुए हैं। साल 2015-16 में भारत से अमेरिका जाने वाले स्टूडेंट्स की संख्या सबसे अधिक रही है। आयरलैंड जैसे देश भी सरकार पर इस वजह से नजरें टिकाए हैं।
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