SEBI ने रिलायंस इंडस्ट्रीज को शेयरों में वायदा कारोबार करने से एक साल के लिए रोका

Samachar Jagat | Saturday, 25 Mar 2017 08:32:43 AM
Sebi stops RIL for one year from trading futures trading in shares

नई दिल्ली। पूंजी बाजार नियामक सेबी ने कथित तौर पर धोखाधड़ीपूर्ण कारोबार करने के दस साल पुराने एक मामले में रिलायंस इंडस्ट्रीज और 12 अन्य पर शेयरों में वायदा एवं विकल्प डेरिवेटिव कारोबार करने पर एक साल की रोक लगा दी है।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड सेबी ने इसके साथ ही मुकेश अंबानी के नेतृत्व वाली कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज को करीब 1,000 करोड़ रूपए  के भुगतान करने का भी आदेश दिया है। हालांकि, कंपनी के प्रवक्ता ने कहा है कि वह सेबी के इस आदेश को चुनौती देंगे। 

रिलायंस इंडस्ट्रीज को सेबी ने इस मामले में 447 करोड़ रूपए की मूल राशि और उस पर 29 नवंबर 2007 से अब तक 12 प्रतिशत की दर से ब्याज का भुगतान करने को कहा गया है। इस हिसाब से कंपनी को कुल करीब 1,000 करोड़ रूपए का भुगतान करना होगा। 

यह मामला रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की अनुषंगी कंपनी रिलायंस पेट्रोलियम से जुड़ा है। रिलायंस पेट्रोलियम अब अस्तित्व में नहीं है। मामला रिलायंस पेट्रोलियम के शेयरों में वायदा एवं विकल्प एफ एण्ड ओ वर्ग में कथित तौर पर धोखाधड़ीपूर्ण कारोबार करने से जुड़ा है। 

सेबी के पूर्णकालिक सदस्य जी. महालिंगम द्वारा जारी 54 पन्ने के आदेश में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड आरआईएल और 12 अन्य इकाइयों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तरीके से शेयर बाजारों में एक साल तक वायदा एवं विकल्प कारोबार करने से रोक लगा दी गई है।

सेबी ने रिलायंस के अलावा जिन 12 अन्य कंपनियों को एक साल के लिए डेरिवेटिव कारोबार करने से रोका है उनमें गुजरात पेटकोक एण्ड पेट्रो प्राडक्ट्स सप्पलाई, आर्थिक कमर्शियल, एलपीजी इंफ्रास्ट्रक्चर इंडिया, रेलपोल प्लास्टिक प्राडक्ट्स, फाइन टेक कमर्शियल, पाइपलाइन इंफ्रास्ट्रक्चर इंडिया, मोटेक साफ्टवेयर, दर्शन सिक्युरिटीज, रिलाजिस्टिक्स इंडिया, रिलाजिस्टिक्स राजस्थान, विनामारा यूनिवर्सल ट्रेडर्स और धरती इन्वेस्टमेंट एण्ड होल्डिंग्स। 

रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड को ब्याज सहित पूरी राशि 45 दिन के भीतर लौटाने को कहा गया है। महालिंगम् ने कहा कि जो भी निर्देश दिया गया है वह बाजार में धोखाधड़ी के दायरे में ध्यान मेें रखते हुए दिया गया है। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने इससे पहले इस मामले को निपटाने का सेबी से आग्रह किया था लेकिन सेबी ने इससे इनकार कर दिया था।  रिलायंस पेट्रोलियम को बाद में रिलायंस इंडस्ट्रीज में मिला दिया गया था।



 

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