खनन से निवेशकों की बेरुखी

Samachar Jagat | Wednesday, 02 Nov 2016 01:37:48 PM
Mining investor apathy

नई दिल्ली। निजी कंपनियां खनन क्षेत्र में निवेश करने से कतरा रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके लिए नियामकीय बाधाएं ही जिम्मेदार नहीं हैं बल्कि खदानों का छोटा आकार और खनिज भंडार की कमी भी उन्हें दूर रख रही है। झारखंड, ओडिशा, राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में हाल में संपन्न खनिज ब्लॉकों की नीलामी से केंद्र सरकार रॉयल्टी, जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) और राष्ट्रीय खनिज उत्खनन ट्रस्ट (एनएमईटी) फंड सहित 59,639 करोड़ रुपए के राजस्व की उम्मीद कर रही है। इन खदानों का पट्टा 50 साल के लिए दिया गया है।

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खान एवं खनिज (विकास एवं नियमन संशोधन) कानून 2015 में सभी खदानों को 50 साल के लिए पट्टे पर देने का प्रावधान है। अलबत्ता विशेषज्ञों का कहना है कि नीलामी के लिए रखी गई 17 खदानें न केवल आकार में छोटी थीं बल्कि उनमें खनिज भंडार भी कम था। इनमें से तीन खदानों में दस लाख टन से भी कम भंडार था। इन खदानों में चूनापत्थर, लौह अयस्क, सोना और हीरा शामिल है।

कर्नाटक में कुछ छोटी खदानों में इस बार किसी ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई और उनकी दोबारा नीलामी हो सकती है। पीडब्ल्यूसी में पार्टनर कामेश्वर राव ने कहा, छोटे खदानों में पूंजी निवेश करना असल में खनन कंपनियों के लिए यह एक चुनौती है। राज्य खनिज विकास एजेंसियों को बड़ी खदानों को प्राथमिकता के आधार पर नीलामी के लिए रखना चाहिए। इससे खनन कंपनियों को फायदा होगा।

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दूसरी ओर खनन सचिव बलविंदर कुमार ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि खदानों के छोटे आकार से नीलामी प्रक्रिया पर कोई फर्क नहीं पड़ा है और निजी क्षेत्र ने इनमें दिलचस्पी दिखाई है। जेएसडब्ल्यू स्टील और एस्सार स्टील जैसी कंपनियों ने कुछ खदानों की नीलामी जीती है। कुमार ने कहा कि एक अंतरमंत्रालयी समिति की अगले महीने बैठक होगी जिसमें नीलामी प्रक्रिया को प्रभावित करने वाले कारकों पर चर्चा होगी। -एजेंसी

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