नई दिल्ली। वस्तु एवं सेवा कर जीएसटी व्यवस्था लागू होने के बाद कारोबारी इकाइयों या कंपनियों को मुनाफाखोरी से रोकने के लिए जीएसटी परिषद संभवत अर्द्ध न्यायिक प्राधिकरण बना सकती है या फिर किसी मौजूदा निकाय की ही सेवाएं ले सकती है। पिछले साल नवंबर में आदर्श जीएसटी कानून के मसौदे में मुनाफाखोरी रोधक व्यवस्था का प्रस्ताव किया गया है, जिससे यह सुनिश्चित हो कि निचली कर दरों का लाभ केवल मुनाफा कमाने के लिये ही नहीं बल्कि उपभोक्ताओं तक भी इसका लाभ पहुंचना चाहिये।
वित्त मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जीएसटी एक राष्ट्र एक कर की अवधारणा वाली व्यवस्था है। इससे कर के उपर कर लगने की मौजूदा व्यवस्था समाप्त होगी और साथ ही कर दर में भी किसी तरह की कटौती का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुचाना होगा। मौजूदा व्यवस्था में कारखाने में विनिर्मित उत्पाद पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क लगता है। जब इसकी बिक्री होती है तो यह एक्स-फैक्ट्री मूल्य पर नहीं बल्कि विनिर्माण और उत्पाद शुल्क की लागत इसमें शामिल कर उस पर मूल्य वर्धित कर वैट लगाया जाता है। जीएसटी के आने के बाद यह व्यवस्था समाप्त हो जायेगी और कर के उपर कर नहीं लगेगा। अधिकारी ने कहा कि जीएसटी विधेयक में उपभोक्ता हितों के संरक्षण के लिए मौजूदा प्राधिकरण को अधिकार देने या नया निकाय बनाने का प्रावधान है।
वित्त मंत्री अरण जेटली की अध्यक्षता वाली जीएसटी परिषद इस बारे में फैसला कर सकती है और मुनाफाखोरी की शिकायतें किसी उपभोक्ता शिकायत मंच को भेजने के बारे में निर्णय कर सकती है या फिर एक नया अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण बनाने का फैसला कर सकती है। अधिकारी ने कहा कि यदि मुनाफाखोरी ज्यादा होती है और जनता से शिकायतें आतीं हैं तो एक पूर्ण प्राधिकरण बनाया जा सकता है। हालांकि, अधिकारी ने कहा कि कर दरों में बहुत ज्यादा कमी आने की संभावना नहीं है क्योंकि ज्यादातर वस्तुओं और सेवाओं पर जीएसटी दर उनकी पुरानी दर के आसपास ही रखी जायेगी। जीएसटी व्यवस्था के तहत 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत की चार दरें रखीं गई हैं।
उन्होंने कहा कि कर नियमों का मामला जीएसटी परिषद की बैठक में इस महीने के आखिर में या फिर अगले महीने की शुरआत में होने वाली बैठक में आ सकता है। जीएसटी व्यवस्था एक जुलाई से लागू होगी जिसमें सभी व्यापारियों और उद्योगों को कर भुगतान, रिटर्न दाखिल करने और रिफंड दावों के लिये जीएसटी नेटवर्क पर पंजीकरण कराना होगा। -(एजेंसी)