नई दिल्ली। सीबीआई निदेशक अनिल सिन्हा शुक्रवार को अपने पद से सेवानिवृत्त हो गए और गुजरात कैडर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना को अपना प्रभार सौंप दिया क्योंकि सरकार ने अभी जांच ब्यूरो के लिए पूर्णकालिक प्रमुख की घोषणा नहीं की है।
गुजरात कैडर के 1984 बैच के अधिकारी अस्थाना को दो दिन पहले सीबीआई में अतिरिक्त निदेशक के रूप में पदोन्नत किया गया था। उन्हें सीबीआई निदेशक का ‘‘अतिरिक्त प्रभार’’ मिला है । इससे पहले, विशेष निदेशक आर के दत्ता, जो जांच ब्यूरो के प्रमुख के पद की दौड़ में थे, को विशेष सचिव के तौर पर गृह मंत्रालय भेज दिया गया था। मंत्रालय में पहली बार दूसरे विशेष सचिव का पद सृजित किया गया है।
दस साल में पहली बार ऐसा हुआ है कि निवर्तमान सीबीआई प्रमुख के उत्तराधिकारी का चयन नहीं किया गया है। सिन्हा ने आज दो साल का अपना कार्यकाल पूरा किया।
कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के जारी आदेश में कहा गया है, ‘‘सक्षम प्राधिकार ने आईपीएस बिहार 1979 अनिल कुमार सिन्हा के अपना कार्यकाल पूरा करने के तत्काल बाद प्रभाव से और अगले आदेश तक के लिये केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक पद का अतिरिक्त कार्यभार, आईपीएस गुजरात 1984 राकेश अस्थाना को बतौर सीबीआई के अतिरिक्त निदेशक सौंपने को मंजूरी प्रदान की है।’’
सीबीआई प्रमुख का चयन एक कॉलेजियम करता है जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता या विपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता और प्रधान न्यायाधीश होते हैं। अभी कॉलेजियम की बैठक नहीं हो पाई है।
अस्थाना सीबीआई में पहले डीआईजी और पुलिस अधीक्षक रह चुके हैं। इस दौरान उन्होंने बिहार में चारा घोटाला, पुरूलिया हथियार मामला, भ्रष्ट लोक सेवकों और अन्य के खिलाफ ट्रैप मामले और आय के ज्ञात स्रोत से अधिक संपत्ति मामले की जांच को दोषसिद्धि के अंजाम तक पहुंचाया था ।
वह सूरत और वड़ोदरा में पुलिस आयुक्त, अहमदाबाद में संयुक्त पुलिस आयुक्त, वड़ोदरा रेंज के आईजीपी, सीआईडी अपराध के डीआईजी, एसपी और डीएसपी रह चुके हैं।
वह गोधरा कांड मामले सहित कई संवेदनशील मामलों की जांच से जुड़े रहे हैं। सीबीआई से जुडऩे से पहले वह अतिरिक्त महानिदेशक आर्म्ड यूनिट गुजरात पद पर थे।
साठ वर्षीय सिन्हा ने तब सीबीआई की कमान संभाली थी जब जांच ब्यूरो ‘पिंजरे में बंद तोता’ और ‘बंद जांच एजेंसी’ जैसे तीखे कटाक्षों का सामना कर रहा था। सिन्हा ने सीमित सोशल सर्किल के साथ मीडिया से दूर रहकर एजेंसी के कामकाज को संभाला एवं उसे आगे बढ़ाया।
सिन्हा एजेंसी के मृदु भाषी लेकिन दृढ़ नेता साबित हुए जिन्होंने शीना बोरा हत्याकांड एवं विजय माल्या ऋण गड़बड़ी कांड जैसे कई महत्वपूर्ण मामलों की जांच का मार्गदर्शन किया।
माल्या मामले में सिन्हा ने यह तय किया कि इस तड़क-भड़क वाले शराब कारोबारी के खिलाफ बंद पड़ चुकी उसकी किंगफिशर एयरलाइंस को मिले ऋण की कथित रूप से अदायगी नहीं किए जाने को लेकर मामला दर्ज हो जबकि बैंक शिकायत लेकर सीबीआई नहीं पहुंचे थे।
सिन्हा ने शीना बोरा हत्याकांड की जांच सीबीआई को सौंपे जाने के बाद अपनी टीमों को इस मामले में पीटर मुखर्जी की भूमिका खंगालने का निर्देश दिया।
उन्होंने यह पक्का किया कि सीबीआई सार्वजनिक बैंकों की गैर निष्पादित संपत्तियों के ढेरों मामलों की सघनता से तहकीकात हो जबकि बैंक संभावित मध्य मार्ग बंद हो जाने के डर से इन मामलों की जांच शुरू किये जाने के पक्ष में नहीं थे। बैंकों को लगता था कि ऋण उल्लंघनकर्ताओं से बातचीत से बीच का रास्ता निकल सकता है।
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की स्थापना के पहले दशक में ही उसके छात्र रहे सिन्हा की मनोविज्ञान एवं अर्थशास्त्र में रूचि रही है और उन्हें अपने परिवार के साथ वक्त गुजारना अच्छा लगता है।