नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने आज व्यवस्था दी कि जमीन के अधिग्रहण के बाद उस जमीन के अवंटी के रूप में आवंटी के रूप में मारुति सुजुकी इंडिया को भूमि अधिग्रहण कानून के तहत मुआवजा तय करने संबंधी मामले में काूननी तौर पर कुछ कहने का कोई अधिकार नहीं बतना है।
न्यायाधीश आदर्श कुमार गोयल तथा न्यायाधीश यू यू ललित ने मारुति सुजुकी तथा हरियाणा राज्य औद्योगिक निगम एचएसआईडीसी को इस मामले में पक्ष बनाये जाने की अनुमति देने संबंधी पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय ने कहा था कि आवंटी के पास मुआवजा मामले में एक पक्ष के रूप में अपनी बात रखने का अधिकार है।
पीठ ने कहा कि भू-अधिग्रहण कानून की धारा 3 एफ के तहत जमीन का अधिग्रहण या तो सार्वजनिक उद्देश्य के लिए की जा सकता है या कानून के खंड सात के तहत किसी कंपनी के लिए किया जा सकता है। यदि अधिग्रहण सार्वजनिक उद्देश्य से किया गया है तो वह भूमि कलेक्टर के मुआवजे संबंधी आदेश को लागू कर कब्जे की कार्रवाई के साथ राज्य के पास चली जाती है। कलेक्टर के आदेश होने तक कोई अन्य व्यक्ति बीच में नहीं आता।
उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा कि जमीन सरकार के हाथ में आने के बाद अधिग्रहण की यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है। पीठ ने यह भी कहा कि अधिग्रहण की प्रक्रिया के बाद सरकार उस जमीन को सार्वजनिक नीलामी अया आवंटन के जरिए किसी भी कीमत पर हस्तांतरित कर सकती है। इसमें उस व्यक्ति का कोई लेना देना नहीं बनता जिसकी जमीन अधिग्रहीत की गयी है।
पीठ ने कहा कि किसी आवंटी को केवल इस तथ्य के आधार पर मुआवजा बढ़ाए जाने का दावा करने का हक नहीं बनता कि सरकार ने अदालत द्वारा निर्धारित मुआवजे की दर के संबंध में उस जमीन के आवंटन का मूल्य तय किया है।